जाट समाज में आपका हार्दिक स्वागत है !

हमारा समुदाय जाट लोगों की समृद्ध विरासत, ताकत और एकता पर आधारित है, जो हमारे लचीलेपन, साहस और गहरी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। उत्तरी भारत से आने वाले जाटों ने इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उन्होंने पीढ़ियों से कृषि, सैन्य सेवा और नेतृत्व में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

हमारा सपना

हमें अपनी मेहनत, स्वतंत्र भावना और सम्मान, समानता और एकजुटता के मूल्यों पर बहुत गर्व है, जो हमें एक साथ बांधते हैं। एक जीवंत और विविध समुदाय के रूप में, हम अपने रीति-रिवाजों, त्योहारों और परंपराओं को मनाने के लिए एक साथ आते हैं, साथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिए विकास और समृद्धि को बढ़ावा देते हैं।

हमारे विशेष कार्य

हमारा मिशन जाट संस्कृति को संरक्षित और बढ़ावा देना है, साथ ही शिक्षा, सामाजिक पहल और सामूहिक समर्थन के माध्यम से अपने समुदाय के सदस्यों को सशक्त बनाना है। चाहे वह हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रमों, युवा कार्यक्रमों या सामुदायिक आउटरीच के माध्यम से हो, हम एक मजबूत  और अधिक जुड़े हुए जाट परिवार के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं।

हमसे जुड़े।

हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य का जश्न मनाने में हमारे साथ शामिल हों, क्योंकि हम जाट होने का सार अपनाना जारी रखते हैं। साथ मिलकर हम और मजबूत होते हैं!

अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा के संगठन महामंत्री
चौधरी शेरसिंह का – सिंहावलोकन

जाट – पाणिनीय मूल ‘जट’ का अर्थ संघ को दर्शाने के लिए किया जाता है – जटा जटँ संघाते। जटा से ही जाट बना है। जाट एक गुणवाचक संज्ञा है। जटिलं कार्यं करोति स: जाट:अर्थात् जटिल काम कर सके वही जाट है। जागर्ति इति जाट्यम् अर्थाfत् जो जागरूक होते हैं वे जाट कहलाते हैं।

अतः पशुपालक एवं कृषक वर्ग ही जाट जाति है। साहस, स्वाभिमान, स्वावलंबन ,समानता , सदाचार, स्वतंत्रता व स्पष्टवादिता के प्रतिमान जाट हैं ।वे अंधविश्वासों से परे ,कठिन परिश्रमी , प्रकृति प्रेमी, सामूहिकता व गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली को अपनाने वाले एवं बलशाली होते हैं। जाटों की शूर-वीरता के कारण ही अंग्रेजों ने अलग जाट रेजीमेंट की स्थापना की। उस रेजीमेंट का ध्येय वाक्य जाटों की चारित्रिक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए जाट बलवान, जय भगवान रखा। उनकी शक्ति को दर्शित करने वाली कहावत है – जाट जड़ूले मारिए अर्थात् जाट को बचपन में ही मारा जा सकता है ।

जाटों ने अपने रिजक (आजीविका) से शक्ति अर्जित कर कई साम्राज्य स्थापित किए।
राजस्थानी के सुप्रसिद्ध कवि कृपाराम खिड़िया लिखते हैं –
पटियालो लाहोर, जींद भरतपुर जोयलै।
जाटां ही मं जोर, रिजक प्रमांणै राजिया ।।
अर्थात् पटियाला, लाहोर, जींद और भरतपुर को देख लीजिए जहां जाटों में ही शक्ति है क्योंकि ताकत का आधार रिजक होता है।
जहां जाट वहां ठाठ कहावत उनकी समृद्धि को दर्शाती है। ठगां तणी नह चलै ठगाई,बात उपजै तुरत विचार ।
जाटां सूं गावां री जांणत,जाटां धर पाई जैकार ।।
-कविराजा बाँकीदास आसिया

जाट जी के से पुरुष हों तो पोपलीला संसार में न चले ।
-महर्षि दयानन्द सरस्वती ( सत्यार्थ प्रकाश -एकादशसमुल्लास: )

अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा के लॉयलपुर अधिवेशन में 9 अप्रैल सन् 1944 को छोटूराम के ऐतिहासिक भाषण के उद्धरण-

-जाटों ने सेना में प्रथम महायुद्ध के समय शौर्य, पराक्रम और बलिदान का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया कि जिस पर दुनिया भर की सर्वाधिक बहादुर कौम भी गर्व करें।

महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः ।
सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रताः ।।
-देवसंहिता पन्द्रहवां श्लोक

अर्थ- जट्ट क्षत्रिय महाबली हैं, महा वीर्यवान और बड़े पराक्रमी हैं , सभी में प्रथम क्षत्रिय , देव के समान दृढ़- प्रतिज्ञा वाले हैं।

हर हालत में यह आशा तो हम विश्वास के साथ कर ही सकते हैं कि देर या सवेर उस महान और चित्ताकर्षक देश (भारत) का पुनरुत्थान अवश्य होगा जिसके निम्न से निम्न वर्गों के सौम्य नागरिक भी राजकुमार साल्तीकोव के शब्दों में-
” इटली के निवासियों से भी अधिक कुशाग्र और कुशल होते हैं।”
जिनकी परवरशता में भी एक शांत महानता दिखाई देती है जिन्होंने अपनी स्वाभाविक तन्द्रा के बावजूद अपनी बहादुरी से ब्रिटिश अफसरों को चकित कर दिया है । जिनके देश से हमें हमारी भाषाएं और हमारे धर्म प्राप्त हुए हैं और जिनके बीच प्राचीन जर्मनों की प्रतिनिधि के रूप में जाट और प्राचीन यूनानियों के प्रतिनिधि के रूप में ब्राह्मण आज भी मौजूद हैं ।

8 अगस्त, 1853 के ‘न्यू -यॉर्क डेली ट्रिब्यून अंक ‘ 3840 में प्रकाशित कार्ल मार्क्स के लेख का एक अंश ।

अंग्रेज लड़ाई में जाटों को कभी नहीं जीत पाए ।
-कर्नल टॉड
हुई मसल मशहूर विश्व में,आठ फिरंगी नौ गोरे ।
लड़ें किले की दीवारों पर,खड़े जाट के दो छोरे ।।

यही भरतपुर दुर्ग है दुजय,दीह भयकार ।
जहैं जट्टन क छोहरे,दिए सुभट्ट पछार ।।
वियोगी हरि
भरतपुर के राजा ने जो नीति अपनाई उससे उनको माली घाटा तो बहुत हुआ लेकिन जाटों को कीर्ति, प्रसिद्धि एवं गौरव मिला।
-कर्नल निकलसन:
पुस्तक, नेटिव स्टेट ऑफ इंडिया

अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा
संस्कृत की उक्ति है- संघे शक्ति: कलौयुगे अर्थात् कलि युग में संगठन में ही शक्ति है। इस बात को ध्यान में रखते हुए समाज के शिक्षित एवं दूर दृष्टि सोच वाले नेताओं ने सन् 1907 में ‘अखिल भारतीयवर्षीय जाट महासभा’ का गठन किया। जाट सभा एक गैर राजनीतिक संगठन है जिसका उद्देश्य समाज को संगठित , शिक्षित एवं संस्कारित कर अपने अधिकारों को प्राप्त करना है। समानता पर आधारित सभा दार्शनिक अल्बर्ट कामू के इस कथन में विश्वास करती है कि-

तुम मेरे आगे मत चलो, हो सकता है मैं अनुसरण न कर सकूं,
तुम मेरे पीछे मत चलो, हो सकता है मैं नेतृत्व न कर सकूं,
बस मेरे साथ चलो और मेरे मित्र बनो ।जाट महासभा कौमी एकता कायम कर कौम की तकदीर और तस्वीर बदलने के लिए हमेशा से प्रयत्नशील रही है क्योंकि –

तकदीर तो कौमों की हुआ करती है, एक इंसान की तकदीर तो कोई तकदीर नहीं ।
समाज की कई महान् राजनीतिक एवं बौद्धिक विभूतियों ने सभा को दिशा- दृष्टि दी। दीनबंधु सर छोटूराम उनमें अग्रणी थे । उन्होंने कहा था-‘ जाटों को आपसी सूझबूझ के साथ एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए ।देश तभी संपन्न बनेगा जब हम पिछड़ेपन से मुक्ति ले लेंगे। पूरा समाज खुशहाल होगा। हमें स्वयं को संगठित कर जाट बिरादरी की विशेषताओं को संजोकर रखना चाहिए’।

कालांतर में दारासिंह ……आदि के नेतृत्व में भी सभा ने राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा काम किया । आज समाज के कुछ महत्वाकांक्षी नेताओं एवं वैचारिक मतभेद के कारण जाटों के कई संगठन-सभाएं बन गई हैं। हमें ‘फूट डालो और राज करो’ की अंग्रेजों की नीति से सबक लेते हुए समाज के उत्थान के लिए संगठित होकर संघर्ष करना चाहिए ताकि हमारी कौमी आवाज बुलंद हो सके।
जाट सभा का ध्येय हो, कौमी ख़ुदी बुलंद।
हक़ हमारा हासिल हो,फ़र्ज़ अर्ज़ फ़रज़ंद।।
अर्थात् जाट सभा का ध्येय कौम के गौरव को बुलंद कर समाज के लोगों को कर्तव्य के प्रति सचेत करने के साथ-साथ अधिकारों के प्रति सचेष्ट करना है।

अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा
आठ संकल्प

1’संघे शक्ति: कलौ युगे’ को मूलमंत्र मानकर समाज में प्रेमभाव बढ़ाकर संगठन मजबूत करना।

2.शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सदाचार ,शिष्टाचार, कर्मठता एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना ।नशा मुक्ति,सामाजिक कुप्रथाओं यथा मृत्यु भोज, पर्दा प्रथा ,दहेज प्रथा आदि को जहां तक हो सके बंद करना।

3.विवाह एवं अन्य सामाजिक उत्सवों में फिजूलखर्ची एवं पैसा- प्रदर्शन को रोकना।

4.कृषि में पारंपरिक फ़सल एवं विधि को छोड़कर प्राकृतिक एवं जैविक कृषि की ओर लौटना ।जल संचय एवं बचत कर ‘जल है तो कल है ‘इस पर ध्यान देकर कृषि, पशुपालन व उद्यान आदि का व्यावसायिक स्तर पर विकास करना ।

5.उद्योग -व्यापार की ओर अग्रसर होना। नौकरी पर निर्भरता कम कर स्वावलंबन की ओर बढ़ना।

6.कौमी -ख़ुदी (गौरव ) को बुलंद कर कार्यपालिका ,न्यायपालिका व व्यवस्थापिका में समाज का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
7. जहां तक संभव हो सके प्रकृति की गोद में सहज जीवन अपनाना
8.जड़ों से जुड़े रहकर समय की धड़कन पहचान देश-काल व परिस्थिति के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण , खान-पान आदि के संबंध में निर्णय लेना।

अंत में कहना चाहूंगा-
कृषि साथ जाट हाट पे, ठाट लाट- अधिराट।
एकहिं घाट बैठ के, नित करो वेद पाठ।।

जय जाट बलवान, जय जवान। जय किसान, जय विज्ञान।।

वेद ही ईश्वरीय ग्रंथ है
वेद ही स्वत: प्रमाण है
वेद ज्ञान है कोई पुस्तक नहीं
वेदज्ञान संस्कृत में है
संस्कृत को देववाणी कहा जाता है
संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है

ऋग्वेद
यजुर्वेद
सामवेद
अथर्ववेद

वीर तेजाजी

तेजाजी या वीर तेजाजी एक राजस्थानी लोक देवता हैं। उन्हें शिव के प्रमुख ग्यारह अवतारों में से एक माना जाता है और राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि राज्यों में देवता के रूप में पूजा जाता है।

मानवविज्ञानी कहते हैं कि तेजाजी एक नायक है जिन्होने जाति व्यवस्था का विरोध किया।

वीर बिग्गाजी

वीर बिग्गामलजी या झुंझार जी का जन्म जाट जाति के जाखड़ गोत्र मैं हुआ। झुंझार जी गायों की रक्षा करते वीर गति को प्राप्त हुऐ। बिग्गाजी जाखड़ गौत्र के कुल देवता के रूप मे पूजे जाते हैं।

धन्ना भगत जी

धन्ना भगत एक रहस्यवादी कवि और एक वैष्णव भक्त थे, जिनके तीन भजन आदि ग्रंथ में मौजूद हैं। वह एक कृष्ण भक्त थे। उनका जन्म राजस्थान के टोंक जिले में तहसील दूनी के पास धुवा गाँव में हिन्दू धालीवाल जाट परिवार में हुआ था।

कर्माबाई

करमा बाई का जन्म कालवा गाँव के किसान जीवनराम डूडी के घर माता रतनी देवी की कोख से भादवा बदी एकं अर्थात 20 अगस्त 1615 ई. को हुआ। कर्मा बाई के पिता चौधरी जीवणराम डूडी ईश्वर में बहुत आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। उनका नित-नियम था कि जब तक भगवान कृष्ण की मूर्ति को जलपान नहीं कराते तब तक स्वयं भी जलपान नहीं ग्रहण करते थे। उन्होने ईश्वर प्राप्ति के लिए अनेक तीर्थों का भ्रमण किया था। 

वीर गोकुला जाट

गोकुला (जिन्हें वीर गोकुला या गोकुल देव के नाम से भी जाना जाता है) तिलपत क्षेत्र (वर्तमान हरियाणा) के एक जमींदार थे, जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल के दौरान हिंदू जमींदारों को मुगल शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था।

महाराजा सूरजमल

महाराजा सूरजमल या सुजान सिंह (13 फरवरी 1707– 25 दिसम्बर 1763) राजस्थान के भरतपुर के हिन्दू राजा थे। राजा सूरज मल में वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता का सुखद संगम सुशोभित था। मेल-मिलाप और सह-अस्तित्व तथा समावेशी सोच को आत्मसात करने वाली भारतीयता के वे सच्चे प्रतीक थे।

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महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह खालसा साम्राज्य के पहले महाराजा थे। वे शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाराजा रणजीत एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एकजुट किया, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं भटकने दिया।

रणजीत सिंह का जन्म सन् 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) महाराजा महा सिंह के घर हुआ था।

राजा नाहर सिंह

राजा नाहर सिंह (1823-1858) हरियाणा के फरीदाबाद जिले में बल्लभगढ़ की रियासत के एक जाट राजा थे। उनके पूर्वज तेवतिया गोत्र के जाट थे जिन्होंने 1739 के आसपास फरीदाबाद में एक किले का निर्माण किया था। वह 1857 के भारतीय विद्रोह में शामिल थे। बल्लभगढ़,फरीदाबाद का छोटा राज्य दिल्ली से केवल 20 मील की दूरी पर है। उनके महल को हरियाणा सरकार ने हरियाणा पर्यटन के अधीन ले लिया है। फरीदाबाद के नाहर सिंह स्टेडियम का नाम उनके नाम पर रखा गया है। वायलेट लाइन में बल्लभगढ़ मेट्रो स्टेशन का नाम भी राजा नाहर सिंह के नाम पर रखा गया है।

सर छोटू राम

चौधरी (सर) राम रिछपाल ओहल्यान or सर छोटू राम (जन्म-24 नवंबर 1881 – 9 जनवरी 1945) ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के एक प्रमुख राजनेता एवं विचारक थे। उन्होने भारतीय उपमहाद्वीप के ग़रीबों के हित में काम किया। इस उपलब्धि के लिए, उन्हें 1937 में ‘नाइट’ की उपाधि दी गई। राजनीतिक मोर्चे पर, वह नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी के सह-संस्थापक थे, जिसने स्वतंत्रता-पूर्व भारत में संयुक्त पंजाब प्रांत पर शासन किया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग को दूर रखा।

Documentary

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह (1 दिसम्बर 1886 – 29 अप्रैल 1979) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, लेखक, क्रांतिकारी, समाज सुधारक और महान दानवीर थे। वे ‘आर्यन पेशवा’ के नाम से प्रसिद्ध थे और भारत की अन्तरिम सरकार के अध्यक्ष थे। यह सरकार प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान बनी थी और भारत के बाहर से संचालित हुई थी। उन्होने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान १९४० में जापान में ‘भारतीय कार्यकारी बोर्ड’ (Executive Board of India) की स्थापना की थी। अपने कॉलेज के साथियों के साथ मिलकर उन्होने सन १९११ में बाल्कन युद्ध में भी भाग लिया। उनकी सेवाओं को याद करते हुए भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया है।

चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह (23 दिसंबर 1902 – 29 मई 1987), जिन्हें चरण सिंह के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे। सिंह मुख्य रूप से भूमि और कृषि सुधार पहलों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने जुलाई 1979 से अगस्त 1979 तक कुछ समय के लिए भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया और बागपत से संसद सदस्य (एमपी) थे। प्रधानमंत्री पद के दौरान वे जनता पार्टी (सेक्युलर) के सदस्य थे। उन्होंने भारतीय क्रांति दल के सदस्य के रूप में उत्तर प्रदेश के 5वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने जनता पार्टी के सदस्य के रूप में जनवरी 1979 से जुलाई 1979 तक कुछ समय के लिए भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में भी कार्य किया। सिंह को व्यापक रूप से “किसानों का चैंपियन” माना जाता है, क्योंकि उनका जीवन किसानों की भलाई और अधिकारों की वकालत करने के लिए समर्पित रहा है।

वीर शहीद भगत सिंह

भगत सिंह (27 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931) एक भारतीय उपनिवेशवाद विरोधी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने दिसंबर 1928 में एक जूनियर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की गलती से हत्या कर दी थी, जो एक भारतीय राष्ट्रवादी की मौत का बदला था। बाद में उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा पर बड़े पैमाने पर प्रतीकात्मक बमबारी और जेल में भूख हड़ताल में भाग लिया, जिसने – भारतीय स्वामित्व वाले समाचार पत्रों में सहानुभूतिपूर्ण कवरेज के बल पर – उन्हें पंजाब क्षेत्र में एक घरेलू नाम बना दिया, और 23 साल की उम्र में उनकी फांसी के बाद उत्तरी भारत में एक शहीद और लोक नायक बन गए।

चौधरी देवी लाल

देवी लाल (जन्म देवी दयाल; 25 सितंबर 1914 – 6 अप्रैल 2001), जिन्हें चौधरी देवी लाल के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय राजनेता और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने 1989 से 1990 और 1990 से 1991 तक भारत के 6वें उप प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। लाल हरियाणा राज्य से किसान नेता के रूप में उभरे, और 1977 से 1979 और फिर 1987 से 1989 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे इंडियन नेशनल लोक दल के संस्थापक थे। वे लोकप्रिय रूप से ताऊ के नाम से जाने जाते थे, जिसका अर्थ चाचा होता है।

महेंद्र सिंह टिकैत

महेंद्र सिंह टिकैत (6 अक्टूबर 1935 – 15 मई 2011) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एक भारतीय किसान नेता थे। उनका जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में हुआ था। वे भारतीय किसान यूनियन (BKU) के अध्यक्ष थे।[1] महेंद्र सिंह टिकैत का 75 वर्ष की आयु में 15 मई 2011 को मुजफ्फरनगर में हड्डी के कैंसर से निधन हो गया। अपने पिता की मृत्यु के बाद आठ साल की उम्र में टिकैत बलियान खाप के चौधरी बन गए थे।

जाट समुदाय के सभी लोग एकजुट हो जाए।

जाटों का इतिहास बहुत पुराना और जटिल है, जिसका उल्लेख प्राचीन काल से मिलता है।

राजवीर

मुझे जाट समुदाय पर गर्व है।

विकास जट

जाट समुदाय के पास खास तौर पर भारत के उत्तरी राज्यों में महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति है। कई राजनीतिक नेता और प्रभावशाली हस्तियाँ जाट समुदाय से आती हैं और वे अक्सर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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